कालसर्प दोष अनुष्ठान

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Thursday, June 17, 2010

तेरी कृपा की कहै कौन प्यारे,मेरा कुछ नहीं सब तेरा ही दिया है |
ये तन भी है तेरा ये मन भी है तेरा,तेरा ही दिया मैंने जीवन जिया है ||
तुझमें है भक्ति ये तेरी कृपा है,कहूं क्या मैंने तुझसे क्या-क्या लिया है |
जो दिया भी है गर मैंने तुमको हे गोविन्द!,तो तेरा ही दिया मैंने तुझको दिया है ||
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करता रहूँ तेरी भक्ति सदा,और तेरी ही प्रसादी मैं पाता रहूँ |
गर चाहत भी हो किसी से जो मेरी,तो दिल से तुम्हीं को में चाहता रहूँ ||
जो आँखें भी बंद करूँ गर मैं प्यारे,तो चित में तेरी छवि ही लाता रहूँ | 
एक इतनी ही अर्ज़ है 'व्योम' की गोविन्द!,बस तेरी ही लीला को गाता रहूँ ||
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जगत में कोई नहीं है अपना |
सभी लोग यहाँ स्वारथ के हैं,इनमें तू मत फंसना ||
श्रेष्ठ जन्म लेकर तू जग में,वृथा न यूँ ही मरना |
'व्योम' कृष्ण का आश्रय लेकर,जन्म सफल तू करना ||
कृष्ण नाम है रस भरा,मतवाला हो पी |
कृष्ण सुगन्धित फूल पार भंवरा बनकर जी ||
भंवरा बनकर जी छोडि जग हेरा फेरी |
दुनिया नहीं है मीत बावरे भूल है तेरी ||
ये नाम मनोहर हरी का प्यारे |
तू बोल सदा श्री कृष्ण.......................
कृष्ण कृष्ण श्री कृष्ण कृष्ण,तू कृष्ण कृष्ण ही कहना |
कृष्ण प्रेम की अग्नि में तू,निशि दिन तपता रहना ||
भौतिक भोग जहर त्यागकर,कृष्णामृत ही चखना |
श्री कृष्ण मिलेंगे तुझे 'व्योम',तू निश्चय यः मन रखना ||
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गरुड़ गोविन्द सौं मन अनुराग्यौ |
अब तक भटकत रह्यौ है जग में,भौतिक रस है चाख्यौ ||
काम,क्रोध,मद.लोभ,मोह में,धान कुधान है भाख्यौ |
प्रभु के सांवरे रूप दरश ते,उर अज्ञान है भाग्यौ ||
जीव जन्म जग नश्वर हैं सब,अब यः मन है राख्यौ |
'व्योमकृष्ण' कौ चित्त सबहीं विधि,गरुड़ गोविन्द सौं लाग्यौ ||
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गरुड़ गोविन्द सौं प्रीति लगायी |
अब तक तौ मैं भवसागर में भटकत ही चली आई ||
जा दिन ते मन बस्यौ सांवरो,जग सौं प्रीति छुड़ाई |
क्षणभंगुर है अखिल स्रष्टि तौ,यह द्रण उर करि लायी ||
भजहूँ एक ही नाम निरंतर,निशि वासर हरी राई |
'व्योमकृष्ण' कहै हे गोविन्द!,मोहि भव सौं पार लगायी ||
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हमारे मन गरुड़ गोविन्द ही भावें |
सुर-नर-मुनि-गन्धर्व आदि गण,इनकी लीला गावें ||
सुन्दर लोल-कपोल औ चितवन,चंचल चित्त चुरावें |
परम अलौकिक छवि लागत है,जब गरुड़ पार धावें ||
कालसर्प दुष्टन के विनाशक,भक्तन के पाप नसावें |
'व्योम' सदा ही भक्त गोविन्द के,मनवांछित फल पावें ||
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Pt.VYOM KRISHNA
बंदौ द्वारिकेश द्वै बेर,तीन ताप हारी,चारि बेर बंदौ कर चक्र के धरिया को |
पांडव सखा को पांच बेर षट बेर श्याम,सात बेर बंदौ सात बैल के नथिया को ||
आठ पटरानी पति आठ बेर बंदौ,नौ बेर बंदौ नवनीत के चुरैया को |
वंदन करत दस बेर दस रूपधारी,बेर-बेर बंदौ बाबा नन्द के कन्हैया को ||
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एक बेर आदि ब्रह्म अच्युत अविनाशी की,द्वै बेर दानव दलैया जन रखैया की |
तीन बेर बोलो जय वामन त्रिविक्रम की,चारि बेर शंख,चक्र,पद्म ,गद धरैया की ||
पाँचें पुरुषोत्तम,छठें क्षिति भक्ष सातें श्याम,आठें अवधेश,नौवें नन्द के कन्हैया की |
दश बेर दश रूप धारी श्री बिहारी जू की,बेर-बेर बोलो जय बांसुरी बजैया की ||
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धर्म सदग्रंथ डूब जाते नशि जाते भक्त,जो ये जग जन्म नहिं होतो हरी प्यारे को |
रस की फुलवारी गिरिधारी बिना सूख जाती,ऊक़ जाती यमुना न गहती किनारे को ||
श्याम सुखधाम ने द्रडाय कें पड़ायो प्रेम,रसमय बनायो ब्रज मेटी तम खरे को |
तिहारो कहा चोर्यो ब्रजरानी क्यों अनीत कथों,चोर नाम धारयो तीन लोक रखवारे को ||
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कठिन कराल कलिकाल की चडाई शीश,तेरौ नहिं कोई देख-देख रे तू पलक खोल |
दारा परदारा परिवार हित पाप करे,हीरा सौ जनम गयौ विषयन में डोल डोल ||
व्योम द्विज हरी सौं हितू नहिं तीनौ लोक,बिन मांगे नाम,कुल,नर तन दियो अमोल |
जगत असर अंधियार निराधार माँहि,एरे मन प्रेम से तू हरी बोल हरी बोल ||
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मांटी की मडैया में महल बन्यौ माया कौ,कई दिन रहैगौ यः अंत डाही जायेगौ |
जाएगी न संग सूर साहिबी सजन बंधू,तरुवर की छांह विभव थिर न थिरायेगौ ||
बडेगौ बुड़ापौ ज्यों,वर्षा की घास,स्वांस रुकि-रुकि कें आवै तब व्यंजन को खावैगौ |
माया लै डूबे तोहि तृष्णा नदी में व्योम,माला बिनु मूड तोहि पार को लगावैगौ ||
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कानन कुंडल मोर पखा सिर,वैजयंती माल गले में सोहै |
बारह भुज कौ रूप अनूपम,भक्त जनन के मन को मोहै ||
परम मनोहर छवि दरश कर,हर कोई पूछै ये सांवरो को है |
जो कोई जाने सो देहे बताय,या गरुड़ गोविन्द सौ रावरो को है ||
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जब ते छवि तेरी निहारि लई,तब ते चित है कछु ऐसी बसाई |
तेरे बारह भुजा के स्वरूप की छवि,मेरे मन मंदिर में गयी है समाई ||
खोयौ रहूँ तेरे ध्यान निरंतर,मोहि और न आवत कछु है सुहाई |
अब तेरौ ही है सब भाँति ये 'व्योम',तू चाहे मिटा या चाहे बनाई ||
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Pt.VYOM KRISHNA

Tuesday, May 25, 2010

                                झूठा है यह जगत निगोड़ा |
रिश्ते नातों की गाडी को, चला रहा माया का घोडा ||
बैठा है तू इस गाडी में, क्यों नहीं इसको छोड़ा |
क्या छोड़ेगा इसको तू जब,बन जाएगा फोड़ा ||
कृष्ण नाम का आश्रय ले ले, अधिक  नहीं तो थोडा |
'व्योम्कृष्ण' जग से रिश्ता अब,हमने ही खुद छोड़ा ||
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                             नाथ तुम मेरी और निहारो |
दीन दयाल  प्रभु तुम हो,मम दीन दशा निस्तारो  ||
तुम ही अंतिम सत्य हो जग के,मायामय जग सारो |
कृपा द्रष्टि  टुक हेरो मो पर,मेरो अंतर्मन कारो ||
एक ही आसरो है या जग में,श्याम मुरलिया वारो  |
'व्योम' कृष्ण या भव सागर ते,हमको पार उतारो ||
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Monday, May 24, 2010

                                                  आरती गरुड़ गोविन्द जी की
ॐ जय गोविन्द स्वामी,-२, जो कोई तुमको ध्यावे-२,
मनवांछित फल पावे |जय अन्तर्यामी|| जय गोविन्द स्वामी||
श्याम स्वरूप सलोनो,मुरली मुख धारी |गरुड़ पे आप विराजो जय संकटहारी||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
यदुकुल में ले जन्म,अनेकन लीला विस्तारी |आदि अंत ते परे प्रभु के चरनन बलिहारी ||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
भक्तन के हित तुमने, रूप अनेक धरे |जो कोई तुमको भूले सो भव सिन्धु परे ||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
लक्ष्मी सहित सुशोभित षडंग वन वासो |जो कोई तुमको ध्यावे सब संकट नासो ||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
 भक्त तुम्हारे निशि दिन तुम्हारो ध्यान धरें |पूजा करें तुम्हारी संकट सकल टरे |ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
गौतम वंशी ब्राह्मण  'व्योम' ब्रह्मचारी | द्वादश भुज वारे की आरती उच्चारी ||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||

Pt.VYOM KRISHNA
re
                                                                                                  अथ गरुड़ गोविन्द स्तोत्र
एकदा सुखमासीनम गर्गाचार्य मुनीश्वरम | बहुलाश्वः परिपपच्छः सर्व शास्त्र विशारदम ||१||
श्रीमद गरुड़ गोविन्द स्तोत्रं कथयामे प्रभो |एतब्दी ज्ञान मात्रेण भुक्ति मुक्ति प्रजायते ||२||
गर्गोवाच-
श्रणु राजन प्रवक्ष्यामि गुह्यादी गुह्यतरं परम |एतब्दी ज्ञान मात्रेण सर्व सिद्धि प्रजायते ||३||
गोविन्दो गरुदोपेतो गोपालो गोप बल्लभ |गरुड़गामी गजोद्धारी गरुड़वाहन ते नमः ||४||
गोविन्दः गरुडारूद गरुड़ प्रियते नमः |गरुड़ त्रान कारिस्ते गरुड़ स्थितः ते नमः ||५||
गरुड़ आर्त हरः स्वामी ब्रजबाला प्रपूजकः |विहंगम सखा श्रीमान गोविन्दो जन रक्षकः ||६||
गरुड़ स्कंध समारुड भक्तवत्सल! ते नमः |लक्ष्मी गरुड़ सम्पन्नः श्यामसुन्दर ते नमः ||७||
द्वादशभुजधारी च द्वादश अरण्य नृत्य कृत |रामावतार त्रेतायां द्वापरे कृष्ण रूप ध्रक ||८||
शंख चक्र गदा धारी पद्म धारी जगत्पति |क्षीराब्धि तनया स्नेह पूर्णपात्र रस व्रती ||९||
पक्शिनाम लाल्पमानाय स व्यपाणीतले नहि |पुनः सुस्मित वक्राय नित्यमेव नमो नमः ||१०||
ब्रजांगना रासरतो ब्रजबाला जन प्रियः |गोविन्दो गरुडानंदो गोपिका प्रणपालकः ||११||
गोविन्दो गोपिकानाथो गोचारण तत्परः |गोविन्दो गोकुलानान्दो गोवर्धन प्रपूजकः ||१२||
श्रीमद गरुड़ गोविन्दः संसार भय नाशनः |धर्मार्थ काम मोक्षानाम खल्विदं साधनं महत ||१३||
ध्यानं गरुड़ गोविन्दस्य सदा सुखदम न्रनाम |रोग क्लेशादीहारिः श्री धनधान्य प्रपद्यकः ||१४||
श्रीमद गरुड़गोविन्द स्मार्कानामयम स्तवः |पुत्र पौत्र कलत्रानाम धन धान्य यशस्कर ||१५||
गोविन्द! गोविन्द! विहंगयुक्त! नमोस्तुते द्वादश बाहू युक्त |गोविप्र रक्षार्थ अवतार धारम,लक्ष्मीपते नित्यमथो नमस्ते ||१६||
वृन्दावन विहारी च रासलीला   मधुव्रतः |राधा विनोद कारिस्ते राधाराधित ते नमः ||१७|
गोलोक धाम वास्तको वृषभानु सुता प्रियः |विहंगोपेंद्र नामे दंता पत्रे विनाशनम ||१८||
गरुड़ अभिमान  हर्ता च गरुड़ आसन संस्थितः |वेणु वाद्यमहोल्लास वेणुवाहन तत्परः ||१९||
भक्त्स्यानंदकारी स्वभक्त प्रियते नमः |माधव गरुड़ गोविन्द करूणासिन्धवे नमः ||२०||
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु द्वादशाक्षर मंत्रकम |अथवा गरुड़ गायत्री धयात्वा सम्पुटमेव हि ||२१||
श्रीमद गरुड़ गोविन्द नाम मात्रेण केवलं |अपस्मार विष व्यालं  शत्रु बाधा प्रनश्यती ||२२||
अधुना गरुड़ गोविन्द गायत्री कथयाम्यहम-:
 भूर्भुवः स्वः तत्पुरुषाय विद्महे गरुड़ गोविन्दाय धीमहि तन्नो गोविन्द प्रचोदयात ||२३||अथ गरुड़ गायत्री ||
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्पुरुषाय विद्महे स्वर्ण पक्षाय धीमहि तन्नो गरुड़ प्रचोदयात ||२४||अथ द्वादशाक्षर मंत्र ||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
इति श्रीमद गरुड़ गोविन्द स्तोत्र समापतम |

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Pt.VYOM KRISHNA

Sunday, May 23, 2010

श्री गरुड़ गोविन्द स्तुति

यस्मादिदम जगदुदेती चतुर्मुखाद्यम यस्मिन अवस्थितमशेषमशेष मूले, यत्रोपयाति विलयम च  समस्तमंता द्रग्गोचरो भवतु मे अद्यः स दीनबंधु.
चक्रम सहस्र कर्चारु करार विन्दे गुर्वी गदा दरवरश्च विभाति यः च,पक्षीन्द्र प्रष्ठ परिरोपित पादपद्मो द्रग्गोचरो भवतु मे अद्यः स दीनबंधु.
यस्यार्द्रष्टि वशतास्तु सुरा सम्रद्धि कोपक्षनें दनुजा विलयम व्रजन्ति,भीताश्चरान्ति च यतोर्क यमानिलाद्या द्रग्गोचरो भवतु मे अद्यः स दीनबंध

  

Thursday, May 20, 2010

temple history

praachin kaal mein,satyug mein ek mahabhayankar,atulit balshaali
daitya 'mahishaashur' hua tha.usne teeno lokon mein bhayankar utpaat
failaya.usne apni aasuri shaktiyon ka prayog kar teeno lokon par
adhikaar kar liya.dev gan svarg lok se bhaagkar param pita brahma ji
ki sharan mein pahunche tatha unse mahishaasur ke vadh ka upaay
poochha.Brahma ji ne devtaao ko kailaash parvat par maa bhagvati uma
ki sharan mein jaane ko kaha.devtaao ne kailaash pahunch kar maa
bhagvati uma ki badi sundar stuti ki tatha apne aane ka prayojan unhe
bataya.tab maa ne unhe mahishaasur ka vadh karne ka aashvaasan diya.
Mahishaasur ke vadh hetu maa bhagvati ne 'kaatyaayani' avtaar
liya.mahishaasur param shaktishaali tha isliye maa kaatyaayani ne
shaktiya praapt karne hetu bhagvaan 'sri vishnu' ki kathin aaraadhana
ki.bhagvaan sri vishnu prakat huye tab maa kaatyaayani ne unki badi
sundar stuti karte huye vardaan maanga ki-'he govind! Aap garud ji par
savaar hokar das vibhinn dishaao mein das vibhinn aayudh lekar meri
rakshha karen,ek bhuja 'sansar' roop mein meri rakshharth dhaaran
karen'.
Tab bhagvaan sri vishnu ne maa kaatyaayani ko 'garud govind ji'
svaroop mein darshan dekar shaktiyaan pradaan ki tatha maa kaatyaayani
ne mahishaasur ka vadh kiya.
Thakur sri govind ji maa kaatyaayani ko diye vardaan ke anusaar das
vibhinn bhujaao mein das vibhinn aayudh dhaaran kiye huye hein tatha
ek bhuja 'rakshharth' varad mudra mein hai aur ek any bhuja se garud
ji ko pakde huye hein.
garud puraan mein is katha ka vistrat varnan praapt hota hai.maa
kaatyaayani ne bhagvaan sri vishnu ki jo stuti ki vah 'srivishnupanjar
stotra' naam se prasiddh hai.yah stotra param kalyaankaari hai.
treta yug mein bhagvaan shri raam ne baarah bhuja ka yah
svaroop,baarah mahino ke baarah sooryon ke shreshthata sambandhi
abhimaan ko mitaane ke liye unke dvaara dee gayeen vibhinn bheto ko
ek saath lene ke liye dhaaran kiya tha.
Dvaapar yug mein bhagvaan sri krishna ne raas leela ke samay,raas
leela ka darshan karne aaye garud ji ki vishesh praarthana par 'baarah
bhuja' ka svaroop dhaaran kar garud ji ko darshan diye.
Jai govind

sri garud govind ji

brij bhagvaan sri krishna ki leela sthali hai.yahaan bhagvaan sri
krishna ne anek roop dhaaran kar anek vibhinn leelayen ki.bhagvaan sri
krishna ke ve sabhi leela vigrah brij mandal mein vibhinn svaroopo
mein aaj bhi viraajmaan hein.
Chhatikara ke paas 'shadang van' mein viraajmaan sri garud govind ji
brij ke aise hi praachintam sri vigrah hein,jinki pratishthapana
lagabhag 5000 varsh poorv sri krishna bhagvaan ke prapautra
'vajranaabh ji' ne apne kulguru 'gargaacharya' ke saannidhya mein ki
thi.bhagvaan sri garud govind ji yahan pauraanik 'baarah bhujao' ke
adviteeya svaroop ke sath sri garud ji ki peeth par viraajmaan
hein.bhagvaan ka yah svaroop sansar mein durlabh hai.sri govind ji ke
sath baayeen taraf maa lakshmi ji viraajmaan hain.
Thakur sri garud govind ji ke darshan param manohar evam kalyaankaari
hein.garud govind ji ke darshan maatra se bhakto ko manovaanchhit fal
ki praapti ho jaati hai.
Sri garud govind ji ki sannidhi se paavan brij ka yah pavitra evam
prachin teeth sthal 'kaal sarp yoga anushthaan' hetu vishva prasiddh
hai.thakurji ke darshan maatra se 'kaal sarp dosh' janit prabhaav
vinasht ho jata hai.
Sri garud govind ji ka ullekh anek prachin grantho-'garud
puraan','garg samhita','bhakt maal' aadi mein praapt hota hai.
Jai govind

Friday, April 30, 2010

रे मन अब गरुड़ गोविन्द गुण गा ले I

भोग लिय भौतिक सुख जग के, सब अरमान निकाले I
अभी समय है मूरख वन्दे, जी भरकर पछता ले I
भौतिक जगत जीव हैं नश्वर, सब हैं देखे भाले I
भटका रहा तू इनमें अब तक, पेरो में पड़ गए छाले I
अगणित पाप कर्मो से तुने, घट के घट भर डाले I
'व्योम्कृष्ण' कहे तोड़ घटो को, पड़ न जाये कही लाले I
रे मन अब गरुड़ गोविन्द गुण गा ले I
garud govind tihari anokhi kala,aur baarah bhuja ko hai roop tiharo.

mor-mukut-makaraakrat kundal,bhaal tilak hai sohat pyaro.
param shubhra hain charan-kamal priya,baar-baar yah roop niharo.
yah chhavi kese kare varnan,yah 'vyom krishna' hai bahut vicharo.

Wednesday, April 14, 2010

Tuesday, April 13, 2010

About Garud Govind Ji Temple,Chhatikara,Vrindavan

The Garud Govind Temple is one amongst the holiest and oldest temples
of Lord Krishna in the world.Sri Garud Govin Ji is here with Maa Laxmi
Ji.Both dieties are over 5000 years old.
The dieties of Lord Garud Govind Ji and Maa Laxmi Ji were
made and established by Sri Vajranabh in the direction of Sri
Gargacharya.Sri Vajranabh was the great grand son of Lord Krishna.
Lord Govind Ji is riding on the back of Garud Ji with a
miracle look of "twelve arms" here.Thats why thakurji is famous by the
name of "Sri Garud Govind Ji".
Sri Garud Govind Temple is world famous for "Kaal Sarp Dosh
Anushthan".

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Vyom krishna