तेरी कृपा की कहै कौन प्यारे,मेरा कुछ नहीं सब तेरा ही दिया है |ये तन भी है तेरा ये मन भी है तेरा,तेरा ही दिया मैंने जीवन जिया है ||
तुझमें है भक्ति ये तेरी कृपा है,कहूं क्या मैंने तुझसे क्या-क्या लिया है |
जो दिया भी है गर मैंने तुमको हे गोविन्द!,तो तेरा ही दिया मैंने तुझको दिया है ||
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करता रहूँ तेरी भक्ति सदा,और तेरी ही प्रसादी मैं पाता रहूँ |
गर चाहत भी हो किसी से जो मेरी,तो दिल से तुम्हीं को में चाहता रहूँ ||
जो आँखें भी बंद करूँ गर मैं प्यारे,तो चित में तेरी छवि ही लाता रहूँ |
एक इतनी ही अर्ज़ है 'व्योम' की गोविन्द!,बस तेरी ही लीला को गाता रहूँ ||
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जगत में कोई नहीं है अपना |
सभी लोग यहाँ स्वारथ के हैं,इनमें तू मत फंसना ||
श्रेष्ठ जन्म लेकर तू जग में,वृथा न यूँ ही मरना |
'व्योम' कृष्ण का आश्रय लेकर,जन्म सफल तू करना ||
कृष्ण नाम है रस भरा,मतवाला हो पी |
कृष्ण सुगन्धित फूल पार भंवरा बनकर जी ||
भंवरा बनकर जी छोडि जग हेरा फेरी |
दुनिया नहीं है मीत बावरे भूल है तेरी ||
ये नाम मनोहर हरी का प्यारे |
तू बोल सदा श्री कृष्ण.......................
कृष्ण कृष्ण श्री कृष्ण कृष्ण,तू कृष्ण कृष्ण ही कहना |
कृष्ण प्रेम की अग्नि में तू,निशि दिन तपता रहना ||
भौतिक भोग जहर त्यागकर,कृष्णामृत ही चखना |
श्री कृष्ण मिलेंगे तुझे 'व्योम',तू निश्चय यः मन रखना ||
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गरुड़ गोविन्द सौं मन अनुराग्यौ |
अब तक भटकत रह्यौ है जग में,भौतिक रस है चाख्यौ ||
काम,क्रोध,मद.लोभ,मोह में,धान कुधान है भाख्यौ |
प्रभु के सांवरे रूप दरश ते,उर अज्ञान है भाग्यौ ||
जीव जन्म जग नश्वर हैं सब,अब यः मन है राख्यौ |
'व्योमकृष्ण' कौ चित्त सबहीं विधि,गरुड़ गोविन्द सौं लाग्यौ ||
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गरुड़ गोविन्द सौं प्रीति लगायी |
अब तक तौ मैं भवसागर में भटकत ही चली आई ||
जा दिन ते मन बस्यौ सांवरो,जग सौं प्रीति छुड़ाई |
क्षणभंगुर है अखिल स्रष्टि तौ,यह द्रण उर करि लायी ||
भजहूँ एक ही नाम निरंतर,निशि वासर हरी राई |
'व्योमकृष्ण' कहै हे गोविन्द!,मोहि भव सौं पार लगायी ||
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हमारे मन गरुड़ गोविन्द ही भावें |
सुर-नर-मुनि-गन्धर्व आदि गण,इनकी लीला गावें ||
सुन्दर लोल-कपोल औ चितवन,चंचल चित्त चुरावें |
परम अलौकिक छवि लागत है,जब गरुड़ पार धावें ||
कालसर्प दुष्टन के विनाशक,भक्तन के पाप नसावें |
'व्योम' सदा ही भक्त गोविन्द के,मनवांछित फल पावें ||
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Pt.VYOM KRISHNA