कालसर्प दोष अनुष्ठान, कुण्डली विश्लेषण एवं ज्योतिषीय समाधान

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Thursday, August 17, 2017

कालसर्प दोष/पितृ दोष/ग्रह दोष निवारण अनुष्ठान अगला कार्यक्रम-:


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Sunday, September 11, 2011

Thursday, June 17, 2010

तेरी कृपा की कहै कौन प्यारे,मेरा कुछ नहीं सब तेरा ही दिया है |
ये तन भी है तेरा ये मन भी है तेरा,तेरा ही दिया मैंने जीवन जिया है ||
तुझमें है भक्ति ये तेरी कृपा है,कहूं क्या मैंने तुझसे क्या-क्या लिया है |
जो दिया भी है गर मैंने तुमको हे गोविन्द!,तो तेरा ही दिया मैंने तुझको दिया है ||
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करता रहूँ तेरी भक्ति सदा,और तेरी ही प्रसादी मैं पाता रहूँ |
गर चाहत भी हो किसी से जो मेरी,तो दिल से तुम्हीं को में चाहता रहूँ ||
जो आँखें भी बंद करूँ गर मैं प्यारे,तो चित में तेरी छवि ही लाता रहूँ | 
एक इतनी ही अर्ज़ है 'व्योम' की गोविन्द!,बस तेरी ही लीला को गाता रहूँ ||
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जगत में कोई नहीं है अपना |
सभी लोग यहाँ स्वारथ के हैं,इनमें तू मत फंसना ||
श्रेष्ठ जन्म लेकर तू जग में,वृथा न यूँ ही मरना |
'व्योम' कृष्ण का आश्रय लेकर,जन्म सफल तू करना ||
कृष्ण नाम है रस भरा,मतवाला हो पी |
कृष्ण सुगन्धित फूल पार भंवरा बनकर जी ||
भंवरा बनकर जी छोडि जग हेरा फेरी |
दुनिया नहीं है मीत बावरे भूल है तेरी ||
ये नाम मनोहर हरी का प्यारे |
तू बोल सदा श्री कृष्ण.......................
कृष्ण कृष्ण श्री कृष्ण कृष्ण,तू कृष्ण कृष्ण ही कहना |
कृष्ण प्रेम की अग्नि में तू,निशि दिन तपता रहना ||
भौतिक भोग जहर त्यागकर,कृष्णामृत ही चखना |
श्री कृष्ण मिलेंगे तुझे 'व्योम',तू निश्चय यः मन रखना ||
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गरुड़ गोविन्द सौं मन अनुराग्यौ |
अब तक भटकत रह्यौ है जग में,भौतिक रस है चाख्यौ ||
काम,क्रोध,मद.लोभ,मोह में,धान कुधान है भाख्यौ |
प्रभु के सांवरे रूप दरश ते,उर अज्ञान है भाग्यौ ||
जीव जन्म जग नश्वर हैं सब,अब यः मन है राख्यौ |
'व्योमकृष्ण' कौ चित्त सबहीं विधि,गरुड़ गोविन्द सौं लाग्यौ ||
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गरुड़ गोविन्द सौं प्रीति लगायी |
अब तक तौ मैं भवसागर में भटकत ही चली आई ||
जा दिन ते मन बस्यौ सांवरो,जग सौं प्रीति छुड़ाई |
क्षणभंगुर है अखिल स्रष्टि तौ,यह द्रण उर करि लायी ||
भजहूँ एक ही नाम निरंतर,निशि वासर हरी राई |
'व्योमकृष्ण' कहै हे गोविन्द!,मोहि भव सौं पार लगायी ||
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हमारे मन गरुड़ गोविन्द ही भावें |
सुर-नर-मुनि-गन्धर्व आदि गण,इनकी लीला गावें ||
सुन्दर लोल-कपोल औ चितवन,चंचल चित्त चुरावें |
परम अलौकिक छवि लागत है,जब गरुड़ पार धावें ||
कालसर्प दुष्टन के विनाशक,भक्तन के पाप नसावें |
'व्योम' सदा ही भक्त गोविन्द के,मनवांछित फल पावें ||
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Pt.VYOM KRISHNA
बंदौ द्वारिकेश द्वै बेर,तीन ताप हारी,चारि बेर बंदौ कर चक्र के धरिया को |
पांडव सखा को पांच बेर षट बेर श्याम,सात बेर बंदौ सात बैल के नथिया को ||
आठ पटरानी पति आठ बेर बंदौ,नौ बेर बंदौ नवनीत के चुरैया को |
वंदन करत दस बेर दस रूपधारी,बेर-बेर बंदौ बाबा नन्द के कन्हैया को ||
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एक बेर आदि ब्रह्म अच्युत अविनाशी की,द्वै बेर दानव दलैया जन रखैया की |
तीन बेर बोलो जय वामन त्रिविक्रम की,चारि बेर शंख,चक्र,पद्म ,गद धरैया की ||
पाँचें पुरुषोत्तम,छठें क्षिति भक्ष सातें श्याम,आठें अवधेश,नौवें नन्द के कन्हैया की |
दश बेर दश रूप धारी श्री बिहारी जू की,बेर-बेर बोलो जय बांसुरी बजैया की ||
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धर्म सदग्रंथ डूब जाते नशि जाते भक्त,जो ये जग जन्म नहिं होतो हरी प्यारे को |
रस की फुलवारी गिरिधारी बिना सूख जाती,ऊक़ जाती यमुना न गहती किनारे को ||
श्याम सुखधाम ने द्रडाय कें पड़ायो प्रेम,रसमय बनायो ब्रज मेटी तम खरे को |
तिहारो कहा चोर्यो ब्रजरानी क्यों अनीत कथों,चोर नाम धारयो तीन लोक रखवारे को ||
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कठिन कराल कलिकाल की चडाई शीश,तेरौ नहिं कोई देख-देख रे तू पलक खोल |
दारा परदारा परिवार हित पाप करे,हीरा सौ जनम गयौ विषयन में डोल डोल ||
व्योम द्विज हरी सौं हितू नहिं तीनौ लोक,बिन मांगे नाम,कुल,नर तन दियो अमोल |
जगत असर अंधियार निराधार माँहि,एरे मन प्रेम से तू हरी बोल हरी बोल ||
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मांटी की मडैया में महल बन्यौ माया कौ,कई दिन रहैगौ यः अंत डाही जायेगौ |
जाएगी न संग सूर साहिबी सजन बंधू,तरुवर की छांह विभव थिर न थिरायेगौ ||
बडेगौ बुड़ापौ ज्यों,वर्षा की घास,स्वांस रुकि-रुकि कें आवै तब व्यंजन को खावैगौ |
माया लै डूबे तोहि तृष्णा नदी में व्योम,माला बिनु मूड तोहि पार को लगावैगौ ||
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कानन कुंडल मोर पखा सिर,वैजयंती माल गले में सोहै |
बारह भुज कौ रूप अनूपम,भक्त जनन के मन को मोहै ||
परम मनोहर छवि दरश कर,हर कोई पूछै ये सांवरो को है |
जो कोई जाने सो देहे बताय,या गरुड़ गोविन्द सौ रावरो को है ||
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जब ते छवि तेरी निहारि लई,तब ते चित है कछु ऐसी बसाई |
तेरे बारह भुजा के स्वरूप की छवि,मेरे मन मंदिर में गयी है समाई ||
खोयौ रहूँ तेरे ध्यान निरंतर,मोहि और न आवत कछु है सुहाई |
अब तेरौ ही है सब भाँति ये 'व्योम',तू चाहे मिटा या चाहे बनाई ||
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Pt.VYOM KRISHNA

Tuesday, May 25, 2010

                                झूठा है यह जगत निगोड़ा |
रिश्ते नातों की गाडी को, चला रहा माया का घोडा ||
बैठा है तू इस गाडी में, क्यों नहीं इसको छोड़ा |
क्या छोड़ेगा इसको तू जब,बन जाएगा फोड़ा ||
कृष्ण नाम का आश्रय ले ले, अधिक  नहीं तो थोडा |
'व्योम्कृष्ण' जग से रिश्ता अब,हमने ही खुद छोड़ा ||
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                             नाथ तुम मेरी और निहारो |
दीन दयाल  प्रभु तुम हो,मम दीन दशा निस्तारो  ||
तुम ही अंतिम सत्य हो जग के,मायामय जग सारो |
कृपा द्रष्टि  टुक हेरो मो पर,मेरो अंतर्मन कारो ||
एक ही आसरो है या जग में,श्याम मुरलिया वारो  |
'व्योम' कृष्ण या भव सागर ते,हमको पार उतारो ||
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Monday, May 24, 2010

                                                  आरती गरुड़ गोविन्द जी की
ॐ जय गोविन्द स्वामी,-२, जो कोई तुमको ध्यावे-२,
मनवांछित फल पावे |जय अन्तर्यामी|| जय गोविन्द स्वामी||
श्याम स्वरूप सलोनो,मुरली मुख धारी |गरुड़ पे आप विराजो जय संकटहारी||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
यदुकुल में ले जन्म,अनेकन लीला विस्तारी |आदि अंत ते परे प्रभु के चरनन बलिहारी ||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
भक्तन के हित तुमने, रूप अनेक धरे |जो कोई तुमको भूले सो भव सिन्धु परे ||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
लक्ष्मी सहित सुशोभित षडंग वन वासो |जो कोई तुमको ध्यावे सब संकट नासो ||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
 भक्त तुम्हारे निशि दिन तुम्हारो ध्यान धरें |पूजा करें तुम्हारी संकट सकल टरे |ॐ जय गोविन्द स्वामी ||
गौतम वंशी ब्राह्मण  'व्योम' ब्रह्मचारी | द्वादश भुज वारे की आरती उच्चारी ||ॐ जय गोविन्द स्वामी ||

Pt.VYOM KRISHNA
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                                                                                                  अथ गरुड़ गोविन्द स्तोत्र
एकदा सुखमासीनम गर्गाचार्य मुनीश्वरम | बहुलाश्वः परिपपच्छः सर्व शास्त्र विशारदम ||१||
श्रीमद गरुड़ गोविन्द स्तोत्रं कथयामे प्रभो |एतब्दी ज्ञान मात्रेण भुक्ति मुक्ति प्रजायते ||२||
गर्गोवाच-
श्रणु राजन प्रवक्ष्यामि गुह्यादी गुह्यतरं परम |एतब्दी ज्ञान मात्रेण सर्व सिद्धि प्रजायते ||३||
गोविन्दो गरुदोपेतो गोपालो गोप बल्लभ |गरुड़गामी गजोद्धारी गरुड़वाहन ते नमः ||४||
गोविन्दः गरुडारूद गरुड़ प्रियते नमः |गरुड़ त्रान कारिस्ते गरुड़ स्थितः ते नमः ||५||
गरुड़ आर्त हरः स्वामी ब्रजबाला प्रपूजकः |विहंगम सखा श्रीमान गोविन्दो जन रक्षकः ||६||
गरुड़ स्कंध समारुड भक्तवत्सल! ते नमः |लक्ष्मी गरुड़ सम्पन्नः श्यामसुन्दर ते नमः ||७||
द्वादशभुजधारी च द्वादश अरण्य नृत्य कृत |रामावतार त्रेतायां द्वापरे कृष्ण रूप ध्रक ||८||
शंख चक्र गदा धारी पद्म धारी जगत्पति |क्षीराब्धि तनया स्नेह पूर्णपात्र रस व्रती ||९||
पक्शिनाम लाल्पमानाय स व्यपाणीतले नहि |पुनः सुस्मित वक्राय नित्यमेव नमो नमः ||१०||
ब्रजांगना रासरतो ब्रजबाला जन प्रियः |गोविन्दो गरुडानंदो गोपिका प्रणपालकः ||११||
गोविन्दो गोपिकानाथो गोचारण तत्परः |गोविन्दो गोकुलानान्दो गोवर्धन प्रपूजकः ||१२||
श्रीमद गरुड़ गोविन्दः संसार भय नाशनः |धर्मार्थ काम मोक्षानाम खल्विदं साधनं महत ||१३||
ध्यानं गरुड़ गोविन्दस्य सदा सुखदम न्रनाम |रोग क्लेशादीहारिः श्री धनधान्य प्रपद्यकः ||१४||
श्रीमद गरुड़गोविन्द स्मार्कानामयम स्तवः |पुत्र पौत्र कलत्रानाम धन धान्य यशस्कर ||१५||
गोविन्द! गोविन्द! विहंगयुक्त! नमोस्तुते द्वादश बाहू युक्त |गोविप्र रक्षार्थ अवतार धारम,लक्ष्मीपते नित्यमथो नमस्ते ||१६||
वृन्दावन विहारी च रासलीला   मधुव्रतः |राधा विनोद कारिस्ते राधाराधित ते नमः ||१७|
गोलोक धाम वास्तको वृषभानु सुता प्रियः |विहंगोपेंद्र नामे दंता पत्रे विनाशनम ||१८||
गरुड़ अभिमान  हर्ता च गरुड़ आसन संस्थितः |वेणु वाद्यमहोल्लास वेणुवाहन तत्परः ||१९||
भक्त्स्यानंदकारी स्वभक्त प्रियते नमः |माधव गरुड़ गोविन्द करूणासिन्धवे नमः ||२०||
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु द्वादशाक्षर मंत्रकम |अथवा गरुड़ गायत्री धयात्वा सम्पुटमेव हि ||२१||
श्रीमद गरुड़ गोविन्द नाम मात्रेण केवलं |अपस्मार विष व्यालं  शत्रु बाधा प्रनश्यती ||२२||
अधुना गरुड़ गोविन्द गायत्री कथयाम्यहम-:
 भूर्भुवः स्वः तत्पुरुषाय विद्महे गरुड़ गोविन्दाय धीमहि तन्नो गोविन्द प्रचोदयात ||२३||अथ गरुड़ गायत्री ||
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्पुरुषाय विद्महे स्वर्ण पक्षाय धीमहि तन्नो गरुड़ प्रचोदयात ||२४||अथ द्वादशाक्षर मंत्र ||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
इति श्रीमद गरुड़ गोविन्द स्तोत्र समापतम |

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Pt.VYOM KRISHNA