रे मन अब गरुड़ गोविन्द गुण गा ले I
भोग लिय भौतिक सुख जग के, सब अरमान निकाले I
अभी समय है मूरख वन्दे, जी भरकर पछता ले I
भौतिक जगत जीव हैं नश्वर, सब हैं देखे भाले I
भटका रहा तू इनमें अब तक, पेरो में पड़ गए छाले I
अगणित पाप कर्मो से तुने, घट के घट भर डाले I
'व्योम्कृष्ण' कहे तोड़ घटो को, पड़ न जाये कही लाले I
रे मन अब गरुड़ गोविन्द गुण गा ले I
Friday, April 30, 2010
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