कालसर्प दोष अनुष्ठान, कुण्डली विश्लेषण एवं ज्योतिषीय समाधान

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Sunday, May 23, 2010

श्री गरुड़ गोविन्द स्तुति

यस्मादिदम जगदुदेती चतुर्मुखाद्यम यस्मिन अवस्थितमशेषमशेष मूले, यत्रोपयाति विलयम च  समस्तमंता द्रग्गोचरो भवतु मे अद्यः स दीनबंधु.
चक्रम सहस्र कर्चारु करार विन्दे गुर्वी गदा दरवरश्च विभाति यः च,पक्षीन्द्र प्रष्ठ परिरोपित पादपद्मो द्रग्गोचरो भवतु मे अद्यः स दीनबंधु.
यस्यार्द्रष्टि वशतास्तु सुरा सम्रद्धि कोपक्षनें दनुजा विलयम व्रजन्ति,भीताश्चरान्ति च यतोर्क यमानिलाद्या द्रग्गोचरो भवतु मे अद्यः स दीनबंध

  

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